Aadmi-nama | Nazam by नज़ीर अकबराबादी

Aadmi-nama


दुनिया में पादशह है सो है वो भी आदमी 
और मुफ़्लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी 

ज़रदार-ए-बे-नवा है सो है वो भी आदमी 
नेमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी 
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी 

फ़ौलाद से गढ़ा है सो है वो भी आदमी 
मरने में आदमी ही कफ़न करते हैं तयार 

नहला-धुला उठाते हैं काँधे पे कर सवार 
कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार 

सब आदमी ही करते हैं मुर्दे के कारोबार 
और वो जो मर गया है सो है वो भी आदमी 

ये आदमी ही करते हैं सब कार-ए-दिल-पज़ीर 
याँ आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर 

अच्छा भी आदमी ही कहाता है ऐ 'नज़ीर' 

और सब में जो बुरा है सो है वो भी आदमी

नज़ीर अकबराबादी
Famous poet of Delhi, with similar status as of the Great Poet Mir Taqi Mir.



Sung by Mohommad Rafi as a rare collection. Visit this youtube link...

Comments

Popular posts from this blog

भरोसा और बकवास

Community Architecture: Microkernel or Monolith !

The Last Mughal | Book Review